October 2, 2023
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कपास की बीमारियों से कैसे सचेत रहे किसान, देखें कपास के रोगों के रोकथाम के उपाय

हैलो किसान भाइयों सब को सुबह कि राम राम आज हम 18जुन एक बार फिर नई जानकारी लेकर हाजिर हुए हैं, आशा करते हैं कि जानकारी आपके लिए यूजफुल होगी, इस पोस्ट के माध्यम से नरमा या कपास मे होने वाले रोगों के बारे में जानकारी प्राप्त करेगे , कपास मे होने वाले प्रमुख रोगों से कैसे बचा जा सकता है,हर रोज ताजा मंडी भाव व अन्य जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर विजिट करें, धन्यवाद आपका दिन शुभ हो
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कपास में लगने वाले रोग व उनसे बचने के उपाय

दो प्रकार के होते हैं। पत्तों पर लगने वाले रोग और जड़ में लगने वाले रोग । पत्तों पर लगने वाले रोगों में से पत्ता मरोड़ रोग मुख्य है। इसके बाद कोणदार धब्बों में जीवाणु रोग भी महत्वपूर्ण है। जड़ में लगने वाले रोगों में जड़ गलन तथा झलुसा रोग पौधे को प्रभावित करने वाला मुख्य रोग है। इसके अलावा टिण्डा गलन रोग जोकि फफूंद जीवाणु और कीड़ों द्वारा उत्पन्न होता है, अधिक बरसात में एक महत्वपूर्ण समस्या का रूप धारण कर लेता है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि इन रोगों की सही पहचान कर समय पर उचित दवाई स्प्रे द्वारा रोकथाम की जा सके , कपास पर लगने वाले मुख्य रोग व उनकी रोकथाम इस प्रकार कर सकते हैं

  1. पत्ता मरोड़ रोग – यह नरमा का सबसे मुख्य रोग है, यह रोज सबसे ज्यादा देखने को मिलता है, सबसे पहले ऊपर की कोमल पत्तियों में इसका असर दिखाई पड़ता है, पत्तियां ऊपर की और मुड़ जाती है और कहीं-कहीं पर पत्तियों की निचली तरफ नसों पर दबे दबे से हो जाते हैं और पत्ती की आकार की बढ़वार भी

दिखाई देती है, ऐसे पौधे छोटे रह जाते हैं, इन पर फूल, कली व टिण्डे नहीं लगते, इनकी बढ़वार एकदम रुक जाती है और इसका ओस्त उपज पर बहुत विपरीत असर पड़ता है। यह रोग एक जैमिनी विषाणु द्वारा फैलता है। सफेद मक्खी इस रोग को लाने व फैलाने में सहायक है। बीज, जमीन या छुआछूत द्वारा यह रोग नहीं फैलता है। यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में आ सकता है। इस रोग से 80/90 % नुकसान फसल में हो सकता है।

यदि यह रोग फसल की शुरुवाती अवस्था में आ जाए, तो ज्यादा नुकसान होता है और फसल की पिछेती अवस्था में आये, तो पैदावार पर लगभग कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।

जब यह रोग जहां पर ज्यादा हो, वहां पर देसी कपास बोई जाए, क्योंकि देसी कपास में यह रोग नहीं लगता। सफेद मक्खी का पूरी तरह से नियंत्रण रखें। कई प्रकार के खरपतवार यानी घास पुश भी इस रोग को फैलाने में सहायक है। इसलिए खेतों के आस-पास के क्षेत्रों में तथा नालियों आदि को बिल्कुल साफ सुथरा रखना बहुत जरुरी है। भिण्डी पर भी यह रोग पाया जाता है। इसलिए जहां पर यह रोग लगता हो, वहां पर भिण्डी को ना लगाए। इस रोग की रोकथाम के लिए कोई फफूंदी नाशक उपयोगी नहीं है। इसके बचाव के लिए महतवपूर्ण सावधानियां बरतनी जरुरी है।

  1. फसल की अगेती बुवाई
    रोग रोधी किस्मों का प्रयोग
  2. सफेद मक्खी को नियंत्रण में रखना।

3.खेत के आस-पास खरपतवार को नहीं होने देना देना।

जीवाणु अंगमारी या धब्बों का रोग – यह रोग पौधे के सभी भागों पर अपने लक्षण दिखाता है। इसके मुख्य लक्षण टहनियों पर धब्बे, पत्तों की नसों पर धब्बे व टिण्डों पर भी धब्बे पाए जाते हैं। इस रोग के लक्षण पत्तों पर कोणदार पानीदार धब्बों के रूप में नज़र आते है। ये गहरे भूरे रंग के होकर किनारों से लाल या जामुनी रंग के हो जाते है व कभी-कभी आपस में

मिले हुए होते हैं व तनों पर लम्बे व अण्डाकार काले रंग के धब्बे होते हैं। प्रकोप की अवस्था में कोणदार धब्बे शिराओं के आश पास सिमट जाते है और इस प्रकार सिरे के पते काली पड़ जाती है जिसमें पत्ता मुड़ जाता है और पीला पड़ कर नीचे गिर जाता है।

माइरोथिसियम पत्ता छेदक धब्बा रोग _यह रोग माइरोथिसियम रोडीडम नामक फफूंद जीवाणु से होता है। इस रोग के प्रमुख लक्षण पत्तों पर लाल बैगनी झलक लिए हल्के भूरे रंग की फफूंद की टिकी वाले

कपास के रोगों के रोकथाम

धब्बे दिखाई देते हैं। आरम्भ में इन धब्बों का आकार पिन के सिरे जैसा होता है। प्रकोप की अवस्था में धब्बे आपस में मिल जाते हैं और प्रायः रोग ग्रसित हिसा पत्तों से गिर जाते है। इससे पत्तों में छेद हो जाते हैं

ऐसे ही लक्षण टिण्डे के नीचे की छोटी पत्ती और कभी-कभी टिण्डों पर नज़र आते हैं। एन्थ्रैक्नोज यह बीमारी पौधे

के हर हीसो पर पौधे की किसी भी अवस्था में आती है। शिशु पौधे पर लाल-लाल धब्बे बनते है और सारे तने पर फैल जाते है, जिससे पौधे मर जाते हैं। जलसिक्त, अन्दर धंसे धब्बे बनते है, जिससे किनारे लाल रंग के होते हैं और बाद में नारंगी रंग का फफूंद जीवाणु इन पर फैल जाता है। रोग लगने से टिण्डों पर धब्बे सभी जगह फैल जाते है और टिंडो पर गुलाबी रंग दिखाई देते हैं।

ग्रेमिल्ड्यू व दहिया रोग यह रोग देसी कपास में लगता है, जब फसल लगभग पक कर तैयार हो जाती है और अधिकतर कपास पहले ही चुग ली जाती है। मिल्ड्यू के धब्बे पुराने पत्तों की निचली सतह पर छोटे, अनियमित व सफेद रंग के दिखाई पड़ते हैं। रोग ग्रसित पत्ते जल्दी ही गिर जाते हैं।

पैराबिल्ट यह वर्तमान समय में कपास का मुख्य सबसे परभावित करने वाले रोग है। यह समस्या आमतौर पर अगस्त से अक्तूबर महीनों के बीच आती है। इसका मुख्य कारण लम्बे समय तक सूखा रहने के बाद सिंचाई देना व वर्षा का होना है। रेतीली जमीन में इसका अधिक प्रकोप होता है। इस समस्या के कारण पौधों के पत्ते अचानक मुरझा जाते है और पौधे शीघ्र सूखने लगते हैं, लेकिन पौधे की जड़े सामान्य रहती है और इसमें कोई बदलाव नहीं लगता है, और इसमें कोई रोगाणु शामिल नहीं होता। इसमे समस्या का लक्षण दिखाई द
पड़ने के 48hour के भीतर 2grm कोबाल्ट क्लोराइड प्रति 200 liter पानी में घोल बना कर किले छिड़काव करें,

कपास के रोगों की सामूहिक रोकथाम

बीज उपचार – पौधों को ज़मीन से उत्पन्न बहुत से फफूंदों से तथा बीज में रहने वाले जीवाणु से बचाव के लिए फफूंदनाशक दवाईयों से उपचारित करें करना न भूलें,

छिड़काव कार्य बुवाई के 6 सप्ताह बाद या जून के अन्तिम या जुलाई के पहले सप्ताह में स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 6-8 ग्राम प्रति एकड़ व कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 600/800 ग्राम प्रति एकड़ को 150/200 लीटर पानी में मिला कर 15/20 दिन के अन्तर पर लगभग तीन या चार छिड़काव करें। यदि गन्धक 10 किलोग्राम प्रति एकड़ धूड़े या बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें, तो देसी कपास के ग्रैमिल्ड्यू रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

नोट – व्यापार अपने विवेक से करे हम किसी भी प्रकार की लाभ हानि कि जिमेदारी नहीं लेते हैं, यह मंडी भाव विभिन्न स्रोतों से एकत्रित करके इस पोस्ट के माध्यम से आप तक ताजा भाव लेकर हाजिर हुए हैं, अधिक जानकारी के लिए अपनी नजदीकी मंडी में मंडी भाव कॉन्फ्रम कर ले या पता कर लें। आशा करते हैं यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी होगी

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